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रविवार, 26 मार्च 2017

जो हमें याद नहीं रहता


मित्रो, आज "दस्तक" समूह के सदस्य और मित्र प्रेमचंद गांधी का जन्मदिन है. उन्हें जन्मदिन की आत्मीय बधाई के साथ रचनात्मक ऊर्जा के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ...
प्रेम चंद गांधी 


|| पहला चुंबन ||
जो हमें याद नहीं रहता
लेकिन हमारी देह पर अंकित हो जाता है
चेतना और स्मृति के इतिहास को कुरेद कर देखो
हमारी दादी, नानी, दाई, नर्स या
किसी डॉक्‍टर ने लिया होगा
इस पृथ्‍वी पर आने के स्‍वागत में
हमारा पहला चुंबन और
सौंप दिया होगा मां को
मां ने लिया होगा दूसरा चुंबन
पहली बार हमने सूखे मुंह से
मां की छातियों को चूमा होगा
शैशव काल में हम
जिसकी भी गोद में जाते
चुंबनों की बौछार पाते
हर किसी में खोजते
हमारी मां जैसी छातियां
हम नहीं जानते
कितनी स्त्रियों का दूध पीकर
हम बड़े हुए
कितनी स्त्रियों ने दिया
हमें अपना पहला चुंबन
थोड़ा-सा बड़ा होते ही
खेल-खेल में हमने
कितने कपोलों पर अंकित किया
अपना प्रेम
हम नहीं जानते
जन्‍म से मृत्‍यु तक
कितने होते हैं जीवन में चुंबन
हम नहीं जानते
जानवरों में जैसे मांएं
अपनी जीभ से चाट-चाट कर
अपनी संतान को संवारती हैं
मनुष्‍यों के पास चुंबन होते हैं
जो जिंदगी संवारते हैं।
* * *




||अगर हर्फों में ही है खुदा ||
वे घर से निकलती हैं
स्‍कूल-कॉलेज के लिए
रंगीन स्‍कार्फ या बुरके में
मोहल्‍ले से बाहर आते ही
बस या ऑटो रिक्‍शा में बैठते ही
हिदायतों को तह करते हुए
उतार देती हैं जकड़न भरे सारे नकाब
वे जिन किताबों को पढ़कर बड़ी होती हैं
उनमें कहीं जिक्र नहीं होता नकाबों का
इतने बेनकाब होते हैं उनकी किताबों के शब्‍द कि
अक्‍सर उन्‍हें रुलाई आती है
परदों में बंद
अपने परिवार की स्त्रियों के लिए
उनकी खामोश सुबकियों और सिसकियों में
आंसुओं का कलमा है
‘ला इलाह इलिल्‍लाह’
कहां हो पैगंबर हज़रत मोहम्‍मद साहेब
ये पढने जाती मुसलमान लड़कियां
आप ही को पुकारती हैं चुपचाप
आप आयें तो इन्‍हें निजात मिले जकड़न से
अर्थ मिले उन शब्‍दों को जो नाजि़ल हुए थे आप पर
अगर हर्फों में ही है खुदा तो
वो जाहिर क्‍यों नहीं होता रोशनाई में।
* * *



|| आंसुओं की लिपि में डूबी प्रार्थनाएं ||
सूख न जायें कंठ इस कदर कि
रेत के अनंत विस्‍तार में बहती हवा
देह पर अंकित कर दे अपने हस्‍ताक्षर
सांस चलती रहे इतनी भर कि
सूखी धरती के पपड़ाये होठों पर बची रहे
बारिश और ओस से मिलने की कामना
आंखों में बची रहे चमक इतनी कि
हंसता हुआ चंद्रमा इनमें
देख सके अपना प्रतिबिंब कभी-भी
देह में बची रहे शक्ति इतनी कि
कहीं की भी यात्रा के लिये
कभी भी निकलने का हौसला बना रहे
होठों पर बची रहे इतनी-सी नमी कि
प्रिय के अधरों से मिलने पर बह निकले
प्रेम का सुसुप्‍त निर्झर।
० प्रेमचंद गांधी

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कवितायें.... प्रेम जी को जन्मदिन की ढेर सारी बधाई। सृजनशील एवं सक्रिय जीवन हेतु शुभकामनाएं 💐💐

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  2. प्रेम जी प्रेम कविताओं के बेमिसाल चितेरे हैं। बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर कविताएँ हैं। इनकी आत्मीयता सहज ही अपनी ओर खींचती है।
    दस्तक ब्लॉग को अपने पहले कदम की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर कविताएँ हैं। इनकी आत्मीयता सहज ही अपनी ओर खींचती है।
    दस्तक ब्लॉग को अपने पहले कदम की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभकामनाएँ। बेहतरीन कविताएँ।

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. प्रेमचंद जी को जन्मदिन की बधाई बहुत बढ़िया कवितायेँ 👌👍

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  8. बढ़िया कविताएँ । प्रेम जी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं। दस्तक के सभी साथियों को बधाई ....युनूस को विशेष धन्यवाद :-)

    जवाब देंहटाएं
  9. बढ़िया कविताएँ । प्रेम जी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं। दस्तक के सभी साथियों को बधाई ....युनूस को विशेष धन्यवाद :-)

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  10. जन्मदिन मुबारक के पहले कहूंगा कविताएँ मुबारक..

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रेम जी की बेहतरीन कवितायें ...💐

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  12. Shandar shuruaat
    जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें प्रेम जी । बहुत अच्छी कविताएँ हैं ।भावपूर्ण पर सहजता के साथ अभिव्यक्त।

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  13. बढ़िया कविताएं.....जन्मदिन की बधाई।

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  14. प्रेमचंद जी के जन्मदिन पर इस शानदार पहल का स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सुंदर कविताएं....प्रेम चंद जी को जन्मदिन की बधाई के साथ-साथ दस्तक समूह को भी बधाई...

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  16. बेहतरीन कविताएँ/ जन्मदिन मुबारक हो !
    *रतीनाथ योगेश्वर

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  17. प्रेम जी को बधाई, उम्दा कविताओं व जन्मदिन दोनों की।

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  18. और 26 मार्च को दस्तक का ब्लॉग पर अवतरण हुआ

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